फिल्म को नेशनल अवॉर्ड मिलने पर थम नहीं रहे विरोध के सुर, अब FTII छात्र संगठन ने जताई आपत्ति

7वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का हाल ही में एलान किया गया। इस बार साल 2023 में रिलीज हुई फिल्मों को नेशनल फिल्म अवॉर्ड दिया गया है। फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को भी नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिला है। निर्देशक सुदीप्तो सेन को फिल्म के लिए बेस्ट डायरेक्टर का नेशनल अवॉर्ड दिया गया है। इस पर तमाम दर्शक खुश हैं। मगर, साथ ही विरोध के सुर भी शुरू हो गए हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन फिल्म को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी पुरस्कार मिलने पर कड़ी आपत्ति जता चुके हैं। कई और नेताओं ने भी विरोध किया है। अब एफटीआईआई छात्र संगठन ने भी निंदा की है।

एफटीआईआई के छात्र संगठन ने कहा, ‘खतरनाक’
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) के एक छात्र संगठन ने ‘द केरल स्टोरी’ को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिए जाने के फैसले की कड़ी निंदा की है और कहा है कि फिल्म को सरकार द्वारा समर्थित मान्यता न केवल निराशाजनक है, बल्कि खतरनाक भी है’। साल 2023 में आई इस फिल्म में केरल में महिलाओं को आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन कराने और भर्ती करने की हकीकत दिखाई गई। इस पर जमकर विवाद हुआ था।

‘यह फिल्म नहीं, हथियार है’
एफटीआईआई छात्र संघ ने अपने एक बयान में कहा कि ‘द केरल स्टोरी’ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक हथियार है। इसमें कहा गया है, ‘राज्य ने एक बार फिर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। अगर सिनेमा के नाम पर कोई दुष्प्रचार उसके बहुसंख्यकवादी, नफरत से भरे एजेंडे से मेल खाता है, तो वह उसे पुरस्कृत करेगा। ‘द केरल स्टोरी’ कोई फिल्म नहीं है, यह एक हथियार है। यह एक झूठा विमर्श है, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को बदनाम करना और उस पूरे राज्य को बदनाम करना है, जो ऐतिहासिक रूप से सांप्रदायिक सद्भाव, शिक्षा और प्रतिरोध के लिए खड़ा रहा है’।

बोले- ‘हम चुप नहीं रहेंगे’
छात्र संगठन की तरफ से बयान में कहा गया है, ‘जब कोई सरकारी संस्था अल्पसंख्यकों के खिलाफ गलत सूचना और डर फैलाने वाली फिल्म को बढ़ावा देती है, तो वह न केवल कला को मान्यता दे रही होती है, बल्कि हिंसा को वैध बना रही होती है। यह भविष्य में लिंचिंग, सामाजिक बहिष्कार और राजनीतिक भेदभाव की पटकथा लिख रही होती है’। आगे कहा है, ‘हम यह मानने से इनकार करते हैं कि इस्लामोफोबिया अब पुरस्कार के योग्य है और हम चुप रहने से भी इनकार करते हैं क्योंकि जिस इंडस्ट्री में हम प्रवेश करना चाहते हैं, उसे झूठ, कट्टरता और फासीवादी विचारधारा को पुरस्कृत करने के लिए नया रूप दिया जा रहा है। हम, छात्र और नागरिक होने के नाते, इसे वही कहना बंद नहीं करेंगे जो यह है।

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