कचरा बीना…ढाबे पर काम किया, आज विक्की हैं अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफर, मिल चुके हैं ढेरों पुरस्कार

कानपुर: कहते हैं कि अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश करती है… यह बात इंटरनेशनल फोटोग्राफर विक्की रॉय पर सटीक बैठती है। 11 साल की उम्र में बेहतर भविष्य की तलाश में घर से निकले विक्की ने कचरा बीना और ढाबे पर काम किया। उनका बिता हुआ कल दूसरों को जिंदगी की मुश्किलों से निपटने और कुछ बनने की हिम्मत देता है। उन्होंने न केवल अपने परिवार को समृद्ध किया, बल्कि सामाजिक सरोकार भी किए।
हाल में वह अपनी वेबसाइट एवरी वन इज गुड एट समथिंग के लिए दिव्यांगजनों की फोटो स्टोरी करने शहर आए हैं। इस दौरान उन्होंने अपने जीवन संघर्षों को साझा किया। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया निवासी विकी रॉय सात भाई-बहनों में दूसरे नंबर के हैं। जब वह छोटे थे तब पिता टेलरिंग का काम करते थे और दिन का बमुश्किल 10-15 रुपये कमा पाते थे। इससे दो टाइम का खाना मिलना भी मुश्किल था। विक्की बताते हैं कि तब फिल्मों में देखता था कि जो लोग घर से भागकर जाते हैं।
कूड़ा बीनने लगे और ट्रेन से बचा खाना खाया
वह या तो हीरो बनते हैं, या फिर बड़े आदमी। यही सोचकर 1999 में मामा की जेब से पैसे चुराकर घर से दिल्ली भाग आया। तब वह 11 साल के थे। दिल्ली स्टेशन की भीड़ ने ऐसा झकझोर दिया कि वह रोने लगे। यह देख कूड़ा बीनने वाले बच्चों ने उन्हें अपने साथ मिला लिया। इसके बाद वह कूड़ा बीनने लगे और ट्रेन से बचा खाना खा कर कूड़े के ढेर पर सो जाते। फिर लगा कि इससे तो ज्यादा पैसे नहीं मिलेंगे, यह सोचकर ढाबे पर काम किया। सन 2000 में सलाम बालक ट्रस्ट में दाखिला लिया।