12 साल की पीड़िता और 28 हफ्ते का गर्भवती…; हाईकोर्ट बोला- जबरन गर्भ नहीं ढो सकती बच्ची

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी भी यौन शोषण की पीड़िता को उसकी इच्छा के विरुद्ध गर्भ ढोने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह टिप्पणी कोर्ट ने उस वक्त की जब एक 12 साल की बच्ची की 28 हफ्ते की गर्भावस्था को खत्म करने की इजाजत मांगी गई। मेडिकल बोर्ड ने इस प्रक्रिया को जोखिम भरा बताया था, लेकिन कोर्ट ने कहा कि बच्ची की इच्छा के खिलाफ उसे मां बनने के लिए मजबूर करना उसके जीवन की दिशा तय करने के अधिकार को छीनने जैसा होगा।
कोर्ट की पीठ में शामिल जस्टिस नितिन साम्ब्रे और जस्टिस सचिन देशमुख ने 17 जून के आदेश में साफ किया कि मेडिकल जोखिम के बावजूद गर्भपात की अनुमति दी जाएगी, क्योंकि यह पीड़िता की इच्छा और मानसिक स्थिति का मामला है। कोर्ट ने कहा कि हम इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि महिला शादीशुदा हो या न हो, गर्भवती होने का अधिकार उसके पास है। लेकिन जब गर्भ अवांछित या हिंसा का परिणाम हो, तो पूरा बोझ महिला पर ही पड़ता है।
कठिन हालात, लेकिन मजबूरी नहीं
12 साल की इस बच्ची के साथ उसके ही चाचा ने यौन उत्पीड़न किया था। इसके बाद लड़की के पिता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति मांगी। कोर्ट ने माना कि गर्भपात जोखिम भरा हो सकता है, लेकिन लड़की को उसकी मर्जी के खिलाफ गर्भ ढोने को मजबूर करना न्याय नहीं होगा।
सुरक्षा का पूरा ध्यान
कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि गर्भपात की प्रक्रिया के दौरान सभी सुरक्षा मानकों का पालन किया जाए और इसमें बाल रोग विशेषज्ञ सहित अनुभवी चिकित्सा दल शामिल हो। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत 20 सप्ताह के बाद गर्भपात केवल कोर्ट की अनुमति से ही किया जा सकता है।
कानूनी संदेश और संवेदनशीलता
यह फैसला ना सिर्फ पीड़िता के अधिकार की रक्षा करता है बल्कि यह भी बताता है कि न्यायालय यौन शोषण की पीड़िताओं के मामले में संवेदनशील और जागरूक है। यह निर्णय भविष्य में ऐसे कई मामलों के लिए मिसाल बन सकता है जहां महिला की इच्छा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।