आज है कार्तिक पूर्णिमा, काशी में गंगा घाटों पर उमड़ा जनसैलाब

कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों सनातनियों ने गंगा में अस्था की डुबकी लगाई। सभी 12 पूर्णिमाओं में कार्तिक मास की पूर्णिमा खास महत्व है। पौराणिक युग से स्थापित महत्व अब भी जनमानस में यथावत है।

यदि ऐसा न होता तो शुक्रवार को लाखों की संख्या में जनमानस गंगा किनारे न उमड़ा होता। ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान के लिए रात्रि के प्रथम प्रहर से ही गांव-गिरांव के लाखों नर-नारी गंगा किनारे घाटों पर जमा हो चुके थे। हरहर महादेव, हरहर गंगे के घोष के साथ भोर से ही शुरू हुआ गंगा स्नान का क्रम दोपहर तक चलता रहा। इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा और गंगा स्नान पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

काशी में पूर्णिमा के स्नान के लिए पंचगंगा,दशाश्वमेध और अस्सी घाट पर मुख्यत: गंगा स्नान का विधान है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए। पुराणों में वर्णन मिलता है कि इस दिन को भगवान विष्णु नें मतस्य अवतार लिया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान और दान का महत्व है। घरों में लोगों ने प्रात: काल सूर्य देव को अक्षत और लाल फूल डाल कर जल अर्पित किया। घर के मुख्यद्वार पर आम के पत्तों का तोरण बनाया। सरसों का तेल, तिल, काले वस्त्र का दान किया।

सायं तुलसी के पास दीपक जलाए। गंगा स्नान के बाद दान का विशेष महत्व है। ऐसे में जहां स्नान करने वालों ने रात से ही जगह छेंक ली थी वहीं भिक्षाटन पर आश्रित रहने वलों की भी लंबी कतारें सभी प्रमुख घाटों के आसपास दिखीं। यह ऐसा दिवस है जब प्रात: उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और सायंकाल पूर्णिमा के चांद को।

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