रूसी तेल से दूरी भारत को पड़ सकती है भारी, विशेषज्ञ बोले- आयात बिल में होगी 11 अरब डॉलर तक की बढ़ोतरी

अमेरिका ने रूस से तेल खरीदना जारी रखने पर भारत को जुर्माना भुगतने की धमकी दी है। जुर्माने की धमकी के चलते अगर भारत रूसी तेल को खरीदना बंद करता है तो उसे भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि रूस से तेल आयात बंद करने के बाद भारत का वार्षिक तेल आयात बिल 9-11 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। हालांकि भारत अमेरिका के दबाव के आगे झुकता नहीं दिख रहा है।
रूस, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का उत्पादक
रूस, कच्चे तेल का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जिसका रोजाना का तेल उत्पादन करीब 9.5 मिलियन बैरल/प्रतिदिन है। यह वैश्विक मांग का करीब 10 प्रतिशत है। रूस, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश भी है, जो लगभग 4.5 मिलियन बैरल प्रति दिन कच्चा तेल और 2.3 मिलियन बैरल प्रति दिन परिष्कृत उत्पादों का निर्यात करता है। साल 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूसी तेल के बाजार से बाहर होने की आशंका थी, जिससे वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ने की आशंका पैदा हो गई। भारत ने इसे अच्छा मौका समझा और इसे लपक लिया।
भारत को मिला है काफी फायदा
फरवरी, 2022 के शुरू में भारत के कच्चे तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी केवल 0.2 प्रतिशत थी। यूरोपीय बाजारों के दरवाजे बंद होने के बाद रूस से भारत को समुद्री निर्यात बढ़ने लगा। अब रूस से भारत कच्चे तेल का 35-40 प्रतिशत आयात कर रहा है। इससे भारत को खुदरा ईंधन की कीमतों को नियंत्रण में रखने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। भारत की तेल कंपनियां ने कुछ तेल घरेलू खपत के लिए रिफाइन करती हैं। बाकी को डीजल व अन्य उत्पादों के रूप में निर्यात किया। कुछ हिस्सा यूरोप को भी निर्यात किया गया। इससे भारतीय तेल कंपनियों को मुनाफा हो रहा है।
अब रिफाइनरियों पर पड़ सकती है दोहरी मार
ट्रंप के टैरिफ, रूस से तेल खरीदने पर जुर्माना लगने और यूरोपीय संघ के रूसी मूल के कच्चे तेल से बने परिष्कृत उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाने से भारतीय रिफाइनरियों के लिए दोहरी मार पड़ सकती है। केप्लर के प्रमुख अनुसंधान विश्लेषक सुमित रिटोलिया इसे दोनों ओर से दबाव बताते हैं। उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ के प्रतिबंध जनवरी 2026 से प्रभावी होंगे। इससे भारतीय रिफाइनरों को कच्चे तेल का उपयोग करने से मजबूर किया जा सकता है। साथ ही अमेरिकी टैरिफ से भारत के रूसी तेल व्यापार को आधार देने वाली शिपिंग, बीमा और वित्तपोषण जीवन रेखा प्रभावित होगी। ये सभी उपाय भारत के कच्चे तेल की खरीद के लचीलेपन को तेजी से कम करते हैं। जोखिम को बढ़ाते हैं तथा महत्वपूर्ण लागत अनिश्चितता पैदा करते हैं।