बसपा के उभार ने कांग्रेस के दलित वोटों में कर दी सेंधमारी, बदल गए दोस्त और दुश्मन; राम ने साध दी राजनीति

दुविधाग्रस्त कांग्रेस के मुस्लिम वोट का ज्यादातर हिस्सा मुलायम झपट ले गए। बसपा के उभार ने कांग्रेस के दलित वोटों में सेंधमारी कर दी। अगड़ी और गैर यादव पिछड़ी जातियों का ज्यादातर वोट राम मंदिर के कारण भाजपा के साथ लामबंद हो गया।  बसपा नेता मायावती चार बार प्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनीं। तीन बार भाजपा के सहयोग से और एक बार अपने बलबूते। बदले समीकरण में मुलायम तीन बार मुख्यमंत्री बने। एक बार उनके पुत्र अखिलेश भी सीएम बने।

बीच में कुछ वर्षों के लिए भाजपा की लोकप्रियता में कुछ गिरावट दिखाई दी, तो लोगों को लगा कि राम मंदिर का असर कम हो रहा है। पर, शायद इसकी वजह भाजपा खुद थी। इसके पीछे शायद कारण था भाजपा के तत्कालीन नेतृत्व का मंदिर मुद्दे को कभी घोषणापत्र में शामिल करना और कभी बाहर रखना। आडवाणी के सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा के सारथी रहे नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यही साबित हो रहा है।

बदल गए दोस्त और दुश्मन : मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद वाराणसी, काठमांडू और केदारनाथ की यात्राओं से राजनीति को हिंदुत्व पर केंद्रित करना शुरू कर दिया। खासतौर पर 2019 में सर्वोच्च न्यायालय से राम मंदिर के पक्ष में फैसला आने के बाद उन्होंने जिस तरह देश की राजनीति और विदेशों के लिए देश की कूटनीति को राम के सरोकारों से भारतीयता एवं हिंदुत्व के रंगों से सराबोर किया, उसके निहितार्थ बहुत व्यापक हैं।

यही वजह रही कि गैर कांग्रेसवाद के शिल्पकार आचार्य नरेंद्र देव, डॉ. राममनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह के गृह राज्य में इनके राजनीतिक विरासत पर दावा करने वाले मुलायम सिंह यादव जैसे नेता की समाजवादी पार्टी को कांग्रेस के साथ खड़ा होने को मजबूर कर दिया है। समाजवाद के नाम पर जो डॉ. लोहिया 70 के दशक में नेहरू और कांग्रेस को रोकने के लिए तत्कालीन जनसंघ से मिलकर चुनाव लड़ रहे थे, उन्हीं के चिंतन से निकलने का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी वोटों की गणित से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीसरी बार सत्तारूढ़ होने से रोकने के लिए कांग्रेस के साथ खड़ी है।

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