‘अदालत मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकती…’, कोर्ट ने बेटियों को नियुक्त किया बुजुर्ग पिता का अभिभावक

मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो बेटियों को उनके 73 वर्षीय पिता का अभिभावक नियुक्त किया है, जो दिल का दौरा (कार्डियक अरेस्ट) के दौरान दिमागी चोट (ब्रेन इंजरी) के कारण बिस्तर पर पड़े हैं और अपनी देखभाल नहीं कर सकते। जस्टिस अभय आहूजा की बेंच ने 8 मई को दिए आदेश में कहा कि ऐसी परिस्थितियों में अदालत मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकती।

हाई कोर्ट करते हैं ‘पैरेन्स पेट्रिए’ अधिकार का इस्तेमाल
हाई कोर्ट ने पाया कि बुज़ुर्ग मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं और खुद की देखभाल या अपनी संपत्ति संभालने में अक्षम हैं। इसलिए कोर्ट ने बेटियों को उनका अभिभावक नियुक्त किया। जस्टिस आहूजा ने कहा, देश के हाई कोर्ट ‘पैरेन्स पेट्रिए’ (ऐसा कानूनी सिद्धांत जिसमें कोर्ट उन लोगों की रक्षा करती है, जो अपनी रक्षा नहीं कर सकते) अधिकार का उपयोग करती हैं। जीवन की ऐसी वास्तविक स्थितियों में अदालतें चुप नहीं रह सकतीं।

दिल का दौरा पड़ने से बुजुर्ग को ब्रेन इंजरी
याचिका के मुताबिक, 2024 में दिल का दौरा पड़ने के कारण बुजुर्ग को दिमागी चोट लगी, जिससे दिमाग को ऑक्सीजन और खून की आपूर्ति नहीं मिल पाई। इसके कारण वह आधे बेहोशी की हालत में हैं और आज तक बिस्तर पर हैं। याचिका में कोर्ट से अनुरोध किया गया था कि पिता की देखभाल के लिए बेटियों को अभिभावक नियुक्त किया जाए, क्योंकि वह न तो बात कर सकते हैं और न ही अपनी बुनियादी जरूरतों की देखभाल कर सकते हैं।

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