बरसाती का 400 रुपये किराया, 200 का पेट्रोल, 200 में खाना, बाकी 200 में हम ऐश करते थे

अबकी बार की चुनावी चर्चा से अभिनेता शेखर सुमन कोसों दूर हैं। सियासत से उन्हें कोई गिला भी नहीं है और न ही इससे इनकार है। बस, वह इन दिनों अपनी वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ की रिलीज की तैयारियां कर रहे हैं और अपने बेटे अध्ययन के साथ इस सीरीज में किए गए किरदारों को खूब याद कर रहे हैं। मुंबई के पॉश इलाके अंधेरी पश्चिम की एक गगनचुंबी इमारत की सबसे ऊपरी मंजिल पर रहने वाले शेखर सुमन की शख्सीयत के लोग आज भी कायल हैं। जमीन से जुड़े, बातों में बेफिक्री और दिल मिल जाए तो ठट्ठा लगाकर हंसना उनको खूब भाता है। इस एक घंटे लंबी बातचीत में शेखर सुमन ने याद किया है, अपना वो सफर जिसे उन्होंने पहली बार खुलकर बयां किया है, ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल के सामने।

आपकी पहली फिल्म ‘उत्सव’ से लेकर ‘हीरामंडी’ तक एक विशेष कालखंड की कहानियों का एक चक्र सा पूरा होता दिख रहा है..
जी हां, 26 सितंबर 1985 को रिलीज फिल्म ‘उत्सव’ से गिनें तो अगले साल इसके 40 साल पूरे हो जाएंगे। ‘हीरामंडी’ में भी वैसा ही माहौल है। वैसा ही पीरियड सिनेमा, उतने ही भव्य सेट, उतने ही महान फिल्मकार। ‘उत्सव’ में शशि कपूर, गिरीश कर्नाड, रेखा के साथ काम करना, भी एक कमाल का दौर था। एक कमाल ये भी था कि बंबई (अब मुंबई) आए हुए अभी मुझे दो हफ्ते भी नहीं हुए थे और मुझे ये फिल्म मिल गई थी। इसे ही किस्मत कहते हैं। ये सारा नसीब में होता है।

मैं ‘उत्सव’ और ‘हीरामंडी’ दोनों में अभिनय का मौका मिलने को लेकर आपकी प्रतिक्रियाएं जाना चाहूंगा। पहले ‘हीरामंडी’ की बात करते हैं..
भंसाली साब के साथ एक मौका मिला था मुझे फिल्म ‘देवदास’ में काम करने का जो मैं नहीं कर पाया, वह चुन्नीलाल का रोल था। उनके लिए दिल में बहुत एहतराम है। हमेशा से उनके लिए बहुत सारा प्यार और अकीदत रही है। मुझे यूं लगता है कि जो बड़े फिल्ममेकर रहे हैं जैसे गुरुदत्त, कमाल अमरोही, के आसिफ साब, राज कपूर, बिमल रॉय आदि, इन सबकी मानवीय भावों पर बहुत जबरदस्त पकड़ रही है। खासतौर से गुरुदत्त और राज कपूर जैसे फिल्मकार जब साहिर और शैलेंद्र जैसे गीतकारों के साथ मिलकर कुछ रचते थे तो उसका असर विलक्षणकारी होता था। किरदारों की नब्ज पकड़ लेना और इन किरदारों के भीतर जहनी और रूहानी तौर पर चले जाना ही एक फिल्मकार की जीत है।

संजय लीला भंसाली की पहली फिल्म आपने कौन सी देखी कि क्या प्रतिक्रिया थी फिल्म के निर्देशन को लेकर आपकी?
मैंने उनकी पहली फिल्म ‘खामोशी’ जब देखी तो मुझे लगा कि इस निर्देशक में कोई बात है। उनके अब के सिनेमा के मुकाबले उसमें कोई भव्यता नहीं थी। लेकिन, मानवीय भावनाओं पर उनकी वो पकड़ कमाल थी। किरदार नाना पाटेकर और सीमा बिस्वास के किरदार, और उनका मनीषा कोइराला के किरदार के बीच जो समीकरण बना है, वह बहुत खूबसूरत है। ‘हम दिल दे चुके सनम’ तक आते आते वह थोड़ा कमर्शियल हुए लेकिन इसके बावजूद, जो सारे रिश्ते उन्होंने इस फिल्म में बनाए, अजय देवगन, सलमान और ऐश्वर्या के किरदारों के बीच या कि ऐश्वर्या के किरदार और उनके पिता के बीच, वह एक बहुत ही जज्बाती इंसान ही ऐसा कर सकता है।

Related Articles

Back to top button