
प्रदेश में पहले चरण में 24 जिलों में 230 नगरीय निकायों में मेयर, पार्षद, अध्यक्ष व सभासदों के चुनाव होने हैं। इन निकायों में 5 नगर निगम, 71 नगर पालिकाएं और 154 नगर पंचायतें हैं।
मेरठ, आगरा, गोरखपुर व कानपुर में 2012 में भाजपा के मेयर चुने गए थे। ये सभी महानगर लंबे समय से भाजपा के गढ़ बने हुए हैं। पिछली बार सत्ता में होने के बावजूद सपा ने अपने सिंबल से चुनाव नहीं लड़ा था।
इस बार सपा, बसपा और कांग्रेस अपने चुनाव चिह्न लेकर मैदान में उतरी है। उनके लिए इन चुनावों में खोने के लिए कुछ खास नहीं है। असली परीक्षा तो भाजपा की है। उस पर जहां अयोध्या में परचम लहराने का दबाव है, वहीं अन्य नगर निगमों में फिर से अपने मेयर बनवाने का दबाव है।
सीएम योगी आदित्यनाथ व भाजपा की प्रदेश इकाई निकाय चुनावों में गुड न्यूज देना चाहती है ताकि इसका संदेश गुजरात तक जाए जहां 9 व 14 दिसंबर को चुनाव होना है।
किले बचाने को किलेबंदी
भाजपा ने अपने शहरी किले बचाने के लिए मजबूत किलेबंदी की है। पहली बार भाजपा ने निकाय चुनावों में इतनी ताकत झोंकी है। निकाय चुनाव में पहले किसी मुख्यमंत्री ने इस तरह प्रचार नहीं किया जैसे योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं। उनके अलावा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेन्द्र नाथ पांडेय, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और डॉ. दिनेश शर्मा सघन दौरे कर रहे हैं।
हर जिले में एक वरिष्ठ पदाधिकारी को प्रभारी बनाकर बैठाया गया है। हर जिले में प्रभारी मंत्री को कमल खिलाने की जिम्मेदारी मिली हैं। सभी महानगरों में सरकार के एक-एक वरिष्ठ मंत्री या भाजपा के वरिष्ठ नेता कैंप कर रहे हैं। वे नाराज भाजपाइयों को मना रहे हैं और दूसरे दलों में सेधमारी कर रहे हैं।
विपक्ष के बिखराव से भाजपा को राहत
भाजपा को विपक्षी दलों के बिखराव से राहत मिली है। शहरी क्षेत्रों में हालांकि सपा, बसपा और कांग्रेस का बहुत ज्यादा जनाधार नहीं है लेकिन वे सभी अपने सिंबल पर चुनावी जंग लड़ रहे हैं। भाजपा विरोधी मतों का अधिकतर निकायों में बंटवारा हो रहा है। यह स्थिति भाजपा के लिए सुखद है। माना जा रहा है कि सीधे मुकाबले में भाजपा को चुनौती मिल सकती थी लेकिन बहुकोणीय मुकाबलों ने उसकी राह आसान कर दी है।