बीजिंग । चीन ने राष्ट्रपति शी चिनफिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट एंड वन रोड (ओबोर) के विस्तार का खाका पेश किया है। इसमें ओबोर को आर्कटिक तक ले जाने की योजना बनाई गई है। इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग के कारण खुले नए रास्तों का जहाजों की आवाजाही के लिए विकास किया जाएगा।
चीन ने शुक्रवार को अपनी आर्कटिक नीति को लेकर आधिकारिक तौर पर पहला श्वेत पत्र जारी किया। इसमें कहा गया है, चीन विभिन्न उद्यमों को बुनियादी ढांचों के निर्माण और प्रायोगिक व्यावसायिक यात्राओं के लिए प्रोत्साहित करेगा। इससे ‘पोलर सिल्क रोड’ आकृति लेगा। चीन आशा करता है कि सभी पक्ष आर्कटिक शिपिंग मार्गों के विकास के माध्यम से ‘पोलर सिल्क रोड’ का निर्माण करेंगे।
अपने हितों का कर रहा विस्तार : चीन के सरकारी अखबार ‘चाइना डेली’ के अनुसार, इस क्षेत्र में चीन अपने हितों का विस्तार कर रहा है। आर्कटिक में रूस की यमाल तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) परियोजना में चीन की बड़ी हिस्सेदारी भी है। इससे चीन को हर साल 40 लाख टन एलएनजी मिलने की उम्मीद है।
चीन एक गैर आर्कटिक देश है। इसके बावजूद वह उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में अपनी सक्रियता तेजी से बढ़ा रहा है। वह 2013 में आर्कटिक काउंसिल का पर्यवेक्षक सदस्य बना था। कनाडा, रूस, नार्वे, डेनमार्क, आइसलैंड, अमेरिका, स्वीडन और फिनलैंड इसके सदस्य हैं। क्षेत्र में चीन की सक्रियता पर कई आर्कटिक देश चिंता जाहिर कर चुके हैं। उन्हें आशंका है कि चीन इसकी आड़ में सेना की तैनाती कर सकता है। इस पर चीन के उप विदेश मंत्री कोंग जुआंयू ने कहा, ‘कुछ लोग आर्कटिक के विकास में हमारी भागीदारी पर गलतफहमी फैला रहे हैं। मेरा मानना है कि इस तरह की चिंताएं गैर जरूरी हैं।’