भारत का संविधान 26 जनवरी 1949 में बनाया गया और इसे 26 जनवरी 1950 को देश के गणतंत्र दिवस के रूप में समर्पित किया। भारतीय संविधान के जनक और पिता भले ही बीआर अंबेडकर हैं। लेकिन शायद ही आप जानते हों कि संविधान के निर्माण में महिलाओं का योगदान भी रहा है जिसे आसानी से भुला दिया गया। 69 वें गणतंत्र दिवस को देश की बेटियों को समर्पित किया है और #बेटियों-का-गणतंत्र मना रहा है। आइए उन महिलाओं से मिले जिन्होंने देश के संविधान के निर्माण में अहम योगदान दिया है।
जब भारतीय संविधान का निर्माण किया जा रहा था तो महिलाओं के अधिकारों की बात भी जोर-शोर से उठी थी। संविधान निर्माण के दौरान उस समय में देशभर विभिन्न अभियानों से जुड़ी महिला हस्तियों को भी जोड़ा था। उसमें एक थी अम्मू स्वामीनाथन। अम्मी का जन्म केरल के पालाघाट जिले के अनक्कारा में हुआ था। उन्होंने 1917 में मद्रास में एनि बेसेंट सहित कई महिलाओं के साथ मिलकर एक वुमन इंडिया एसोसिएशन का निर्माण किया था। वह 1946 में मद्रास कंस्टीट्यएंसी की हिस्सा भी थीं। जब 24 नवंबर 1949 में बी आर अंबेडकर संविधान के बारे में अपनी बात रख रहे थे तब आत्मविश्वास से लबरेज अम्मू ने कहा था- भारत के बारे में दुनिया वालों का कहना है कि भारत में महिलाओं को बराबरी का अधिकार नहीं दिया गया है लेकिन अब हम कह सकते हैं कि भारतीयों ने अपना संविधान खुद बनाया है और दूसरे देशों की तरह अपने देश में भी महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिया है। अम्मू 1952 में लोक सभा के लिए चुनी गईं थी जबकि 1954 में राज्यसभा की सांसद बनी थीं। दक्क्षयानी वेल्याधन दबे कुचले वर्ग की आवाज रही हैं। वेल्याधन का जन्म 1912 में कोचीन के बोलगट्टी में हुआ था। वह पुलाया समुदाय से आती थीं वह अपने समुदाय की पहली महिला थीं जो पढ़ी लिखी थीं और आधुनिक कपड़े पहना करती थीं। 1945 में दक्क्षयानी कोचीन लेजिसलेटिव काउंसिल के लिए नामित की गईं। वह पहली और अकेली दलित महिला थीं जो 1946 में कंस्टीट्यूट एसेंबली का चयन किया गया था। संविधान के निर्माण के दौरान दक्क्षयानी ने दलितों से जुड़ी कई समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया था। जिसके बाद संविधान में दलितों के लिए विशेष स्थान दिया गया था।
मालेरकोट्ला के अमीर घर में पैदा हुईं थीं और उनकी शादी नवाब ऐजाज रसूल से हुई थी। वह आजाद भारत के संविधान सभा में शामिल होने वाली पहली भारतीय मुस्लिम महिला थीं। 1935 में ऐजाज दंपत्ति ने मुस्लिम लीग ज्वाइन किया था लेकिन देश के आजाद होने के बाद 1950 में दोनों ने ही कांग्रेस को ज्वाइन कर लिया था। संविधान निर्माण के दौरान ऐजाज ने कई मुद्दों पर अपनी बात अंबेडकर को बताई जिसे संविधान में शामिल भी किया गया। 1969-71 में वह सोशल वेलफेयर और अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री भी रहीं। सन 2000 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। दुर्गा बाई का जन्म 1909 में राजामंड्री में हुआ था। महज 12 साल की उम्र में उन्होंने नॉन को-ऑपरेशन मूवमेंट में भाग लिया साथ ही उन्होंने 1930 में बापू के नमक सत्याग्रह आंदोलन में भी भाग लिया था। 1936 में उन्होंने आंध्र महिला सभा का निर्माण किया था। उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था से जुड़े मामलों में संविधान में अहम बातें जुड़वाई। वह शिक्षा और महिला से जुड़ी कई संस्थाओं से जुड़ी और उसकी अध्यक्षता भी की। उन्हें 1975 में पद्म विभूषण से भी नवाजा गया।
1897 में जन्मी हंसा बड़ौदा के एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्मीं। हंसा ने इंगलैंड से पत्रकारिता और समाजशास्त्र की पढ़ाई की। वह देश की जानीमानी शिक्षाविद और लेखिका मानी जाती हैं। उन्होंने बच्चों के लिए गुजराती में कई किताबें लिखीं वहीं इंगलिश में गुलिवर ट्रैवल्स भी लिखी है। हंसा ने हैदराबाद में आयोजित ऑल इंडिया वुमेन कांफ्रेस के अपने प्रेसिडेंशियल एड्रेस में महिला के अधिकारों की बात की। महिला अधिकारों की बात उन्होंने संविधान के निर्माण में कही जिसे प्रमुखता से सुना गया और संविधान में फेरबदल भी किया गया। लखनऊ के एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्मीं कमला को अपनी पढ़ाई लिखाई के लिए काफी स्ट्रगल करना पड़ा था। उन्होंने क्रांति घर से ही शुरू की थी और 1930 में ही वो गांधी जी से जुड़ी और उनके सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़ी। वह एक फिक्शन लेखिका थी और महिलाओं के अधिकारों पर खुल कर अपनी बात रखती थीं। ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के 54 वें सेशन में वो उपाध्यक्ष बनीं और 70 के आखिरी दशकों में लोकसभा तक भी पहुंची।
लीला रॉय का जन्म 1990 में आसाम के गोलपारा में हुआ था। उनके पिता डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। वह महिला अधिकारों के लिए शुरू से ही आवाज बुलंद करती रहीं। गांधी जी के साथ कई आंदोलनों में जुड़ने के बाद 1937 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की।लीला रॉय ने सुभाषचंद्र बोस की महिला सबकमीटी की सदस्य रहीं जब 1940 में सुभाष चंद्र बोस जेल गए तब वह फॉरवार्ड ब्लॉक वीकली की संपादक भी बनीं। देश छोड़ने से पहले नेताजी ने पार्टी का सारा कार्यभार लीला रॉय और उनकी पत्नी को सौंप दिया था।संविधान निर्माण में उनके महत्व को भुलाया नहीं जा सकता है। पूर्वी बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्मीं मालती का जन्म 1904 में हुआ था। 16 वर्ष की आयु में मालती शांति निकेतन गईं। उनकी शादी नबकृष्णा चौधरी से हुई जो बाद में उड़ीसा के मुख्यमंत्री भी बनें। मालती गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन सहित कई आंदोलनों से जुड़ी रहीं। 1933 में उन्होंने उत्कल कांग्रेस समाजवादी करमी संघ का निर्माण किया। वहीं 1934 में उन्होंने गांधी की पदयात्रा से भी जुड़ी। कमजोर समुदायों के विकास के लिए उन्होंने न केवल आवाज बुलंद की बल्कि उनकी आवाज भी बनीं। गरीबों को आवाज उन्होंने संविधान निर्माण के दौरान उनकी बातों को रख कर भी दिया।
पूर्णिमा बनर्जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इलाहाबाद में सचिव बनीं और महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद करती रहीं। 1930-40 में देश के आजादी से जुड़े कई आंदोलन का हिस्सा बनीं। अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन और सत्याग्रह आंदोलन के कारण जेल भी गईं। संविधान सभा में पूर्णिमा बनर्जी के भाषणों में से एक और हड़ताली पहलुओं में से एक समाजवादी विचारधारा के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता भी थी।लखनऊ में पैदा हुई अमृत कौर देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री है। वह इस पद पर दस वर्षों तक रहीं। कपूरथला महाराजा के बेटे हरनाम सिंह की बेटी थीं। अमृत कौर की पढ़ाई लिखाई इंगलैंड में हुई। वह सबकुछ छोड़कर 16 वर्षों तक महात्मा गांधी की सेक्रेटरी रहीं। अमृत एम्स की संस्थापक रहीं। वह महिला शिक्षा, खेल और स्वास्थ्य पर भी बराबर का अधिकार रखती रहीं। उन्होंने देश में ट्यूबरकुलोसिस एसोसिएशन, सेंट्रल लेप्रेसी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट का भी गठन किया। उन्होंने संविधान निर्माण के दौरान स्वास्थ्य सेक्टर से जुड़े अहम सुझावों पर बात की।
रेणुका रॉय आईसीएस अधिकारी सतीश चंद्र मुखर्जी की बेटी हैं। रेणुका की पढ़ाई लिखाई लंदन में हुई उन्होंने अपनी बीए तक की पढ़ाई लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से की। उन्होंने 1934 में लीगल डिसेबिलीटी ऑफ वुमेन इन इंडिया का गठन किया था। उन्होंने महिला के अधिकारों के लिए कई लड़ाइयां लड़ी और संविधान में महिलाओं की बात रखने में अहम योगदान दिया। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए बात करते हुए कहा था कि पूरी दुनिया में महिलाओं की स्थिति अन्यायपूर्ण है। सरोजिनी नायडु का जन्म हैदराबाद में 13 फरवरी 1879 में हुआ था। वह पहली भारतीय महिला हैं जो भारतीय नेशनल कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। सरोजनी नायडु को भारत की नाइटेंगल कहा जाता था। सरोजनी नायडु ने लंदन के किंग्स कॉलेज से पढ़ाई की। वह महात्मा गांधी के कई आंदोलनों से जुड़ी रही है।