जिंदगी की यात्रा में ‘यात्राएं’ अपना एक खास स्थान रखती हैं। इनसे व्यक्ति को नई जगहों, नई संस्कृति, नई भाषा और नए लोगों से रू-ब-रू होने का मौका मिलता है। यात्रा के दौरान व्यक्ति अपनी जिंदगी के एक ऐसे हिस्से को जीता है, जिसमें वह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के तनावों को भूलकर खुश रहने की कोशिश करता है।
शायद इसीलिए सेंट ऑगस्टाइन ने कहा है कि ‘दुनिया एक किताब है और जो यात्रा नहीं करते हैं, वे सिर्फ एक पेज ही पढ़ पाते हैं।’ जाहिर है, दुनिया की किताब को पढ़ने का एक ही तरीका है यात्रा करना। एक अमेरिकी रिसर्च में पाया गया है कि ज्यादा यात्राएं करने वाले लोग अधिक क्रिएटिव और विनम्र होते हैं।
यात्रा के दौरान हमें अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आकर लगातार बदलते रहना होता है। नई परिस्थितियों में नए फैसले लेने होते हैं। नए माहौल में जब नई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो ऐसे वक्त में लिए गए फैसले बहुत महत्वपूर्ण बन जाते हैं। इससे फैसले और जिम्मेदारी लेने के गुण को सीखने का मौका मिलता है।
अब जरूरी नहीं कि जो ग्रुप की सोच हो, वही आपकी भी हो, मगर जब आप अकेले यात्रा पर होते हैं, तब आप अपने विचारों और इच्छाओं के प्रति ज्यादा ईमानदार और पारदर्शी रह पाते हैं। ऑस्कर वाइल्ड के मुताबिक, अकेले यात्रा करने से ‘अकेले रहने’ और दूसरों से प्रभावित न होने की कला सीखने का मौका मिलता है।
सोलो ट्रैवलिंग आपको अकेले रहने की कला के साथ यह भी सिखाती है कि जब आप अकेले होते हैं, तो इसका मतलब सिर्फ इतना होता है कि आप खुद के साथ हैं। अकेले यात्रा के दौरान अनजान लोगों से मिलना, उनसे बात करना, उनसे दोस्ती करना, एक अनोखा अनुभव देता है। इस दौरान व्यक्ति एक तरह की स्वतंत्रता महसूस करता है। वह बगैर किसी की सलाह-मशविरा के दिल खोलकर जो करना चाहे कर सकता है।