नई दिल्ली। कृषि निर्यात को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने को लेकर सरकार ने कारगर रणनीति तैयार की है, जिसका असर जल्दी ही दिखाई पड़ सकता है। घरेलू बागवानी उत्पादों की वैश्विक बाजार में बढ़ती मांग का फायदा उठाने की जरूरत है। चावल और मसाला निर्यात के साथ अन्य कृषि उत्पादों पर जोर दिया जाएगा। ताजा फलों व सब्जियों की निर्यात मांग में लगातार इजाफा हो रहा है। गुणवत्ता की कसौटी पर अति संवेदनशील यूरोपीय संघ के देशों में भारत के ताजा फल व सब्जियां खरे उतरते हैं। आमतौर पर यूरोपीय देशों में बासमती चावल की ही ज्यादातर मांग रहती है।
आम बजट में सरकार ने कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ाकर तीन गुना से भी ज्यादा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। कृषि उत्पादों के निर्यात की दिशा में कई संगठित कंपनियां उतर चुकी हैं। एक आंकड़े के मुताबिक अकेले यूरोपीय संघ के देशों में 10 हजार करोड़ रुपये मूल्य के बागवानी उत्पादों का निर्यात किया जा चुका है। किसानों को भी संगठन या कंपनी बनाकर इस दिशा में पहल करने की जरूरत है। किसान कंपनियों को सरकार की ओर से कई तरह की सहूलियतें भी दी जा रही हैं। रियायती दरों पर ऋण, उन्नत बीज, फर्टिलाइजर, कृषि मशीनरी के लिए दीर्घावधि ऋण में भी रियायत दिये जाने का प्रावधान किया गया है।
कृषि उत्पादों के निर्यात पर लगी रोक हटाने में उदारता बरतने की जरूरत है। कृषि उत्पादों के आयात व निर्यात से संबंधित कोई फैसला लेने से पहले इससे जुड़े विभिन्न मंत्रालयों व विभागों की राय ली जानी चाहिए। उपभोक्ताओं के हितों के साथ किसानों के हितों का जरूर ध्यान दिया जाए। फिलहाल तीन दर्जन कृषि उत्पादों का निर्यात किया जा रहा है। देश के कुल निर्यात में कृषि उत्पादों के निर्यात की हिस्सेदारी 15 फीसद के आसपास है।
आम बजट के दो दिन बाद ही प्याज के निर्यात पर लगी परोक्ष रोक हटा ली गई है यानी न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) की शर्त को हटा लिया गया है। फिलहाल किसी भी कृषि उत्पाद पर एमईपी नहीं लगा है। सबसे बड़ी जरूरत खाद्य तेलों व दालों के आयात को रोकने की है। अकेले खाद्य तेलों के आयात से जहां लगभग एक लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा व्यय करनी पड़ती है, वहीं सस्ते आयात से घरेलू तिलहन की खेती प्रभावित हो रही है। इसके लिए उपयुक्त नीति का होना जरूरी है।