ओडिशा में बीते 18 साल से राज कर रहे मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। बीते साल हुए पंचायत चुनावों के बाद भाजपा ने कांग्रेस को पीछे छोड़ प्रमुख विपक्ष की भूमिका संभाल ली है और उसने राज्य में तेजी से अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी है।
भाजपा की चुनौती देख नवीन पटनायक ने भी मोर्चा संभाल लिया और पोस्टरों, बैनरों के साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी बढ़ा दी है। ओडिशा की स्थानीय राजनीति में बीजू जनता दल के नेता नवीन पटनायक अभी भी सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन 18 साल की सरकार में पार्टी व प्रशासनिक स्तर दिक्कतें बढ़ी हैं। शुरुआती दौर में बीजद की सहयोगी रही भाजपा ही अब उनकी सबसे प्रबल विरोधी है और शहरों से लेकर गांवों तक उनको चुनौती दे रही है। भुवनेश्वर से कटक और केंद्रपाड़ा के रास्ते में लोगों से बातचीत में बदलाव दिखता भी है। लोग बीजद व नवीन पटनायक से बाहर हटकर भाजपा के बारे में सोचने और बोलने लगे हैं। लोगों की सोच में आ रहे इस बदलाव से नवीन पटनायक सतर्क हो गए हैं और वे जनता के बीच पहले से ज्यादा जा रहे हैं।
पंचायत चुनावों से बदली स्थितियां
बीते साल फरवरी माह में भाजपा ने पंचायत चुनाव में बड़ी सफलता हासिल की थी। बीजद के कई गढ़ों को उसने ध्वस्त किया था और विधानसभावार आकलन में वह राज्य की 45 सीटों पर बढ़त बनाने में सफल रही थी। यह बीजद को विपक्ष से मिली बड़ी चुनौती थी। दरअसल, बीजद को दो फीसद वोट कम होने पर ही 24 विधानसभा सीटों में पिछड़ना पड़ा। राज्य की 147 सीटों वाली विधानसभा में बीजद के 117 विधायक चुनाव जीते थे, तब 44 फीसद वोट मिले थे, जो पंचायत चुनाव में 42 फीसद रह गए थे और उसकी बढ़त 93 सीटों की रह गई थी।
रणनीतिक ढंग से काम कर रही है भाजपा
भाजपा के लिए भी पंचायत चुनावों में मिले समर्थन को आगे बढ़ाना बड़ी चुनौती है। इन नतीजों के बाद उसने मिशन ओडिशा के लिए रणनीतिक ढंग से काम शुरू कर दिया है। बीते साल अप्रैल में उसने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भुवनेश्वर में कर माहौल गरमाना शुरू किया। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबा रोड शो किया जिसमें भारी भीड़ जुटी थी। भाजपा ने पैठ मजबूत करने के लिए कांग्रेस व बीजद के भीतर के असंतुष्ट व बाहर आए नेताओं को साधना शुरू कर दिया है।